SYL पर हरियाणा CM का पंजाब CM को पत्र; हक की बात, सुप्रीम कोर्ट का जिक्र और इंतजार... जानिए मनोहर लाल ने भगवंत मान से क्या कहा?
Haryana CM Letter To Punjab CM On SYL Issue Latest News Update
Haryana CM Letter To Punjab CM: पंजाब-हरियाणा के बीच दशकों से विवादित सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) मुद्दे का कोई समाधान नहीं हो पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी पंजाब सरकार अपना रुख नहीं बदलना चाहती, जबकि हरियाणा सरकार है कि, उसे एसवाईएल का पानी लेना ही लेना है। इसी कड़ी में अब हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने पंजाब के सीएम भगवंत मान को एसवाईएल पर एक पत्र लिखा है। हरियाणा डीपीआर ने इसकी जानकारी दी है।
डीपीआर ने बताया कि, सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) हरियाणा का हक है और इसके लिए हरियाणा के सीएम मनोहर लाल हर संभव कदम उठा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पुरजोर तरीके से पैरवी करने के बाद अब सीएम ने अपने समकक्ष पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र लिखा है। सीएम ने स्पष्ट किया कि वे एसवाईएल नहर के निर्माण के रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा या मुद्दे को हल करने के लिए उनसे मिलने को तैयार हैं। उन्होंने कहा है कि हरियाणा का प्रत्येक नागरिक पंजाब के हिस्से में एसवाईएल के निर्माण के शीघ्र पूरा होने की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है।
बता दें कि, सतलज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर पंजाब में लगभग 121 किमी और हरियाणा में 90 किमी तक फैली हुई है, हरियाणा में नहर का 90 किलोमीटर के हिस्से में निर्माण कार्य 1980 तक पूरा हो चुका है, वहीं पंजाब में शेष 121 किलोमीटर के हिस्से में निर्माण कार्य रुका हुआ है।
पंजाब सरकार का कहना- देने के लिए एक बूंद नहीं
सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) पर चर्चा करते हुए पंजाब सरकार बार-बार एक ही बात दोहरा रही है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार खाने के बाद भी पंजाब सरकार एसवाईएल का पानी हरियाणा को नहीं देना चाहती। सीएम भगवंत मान ने हाल ही एक बयान देते हुए कहा था कि, पंजाब के पास किसी भी राज्य को देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। इसलिए किसी भी कीमत पर एक बूंद भी पानी किसी को नहीं दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को क्या फटकार लगाई थी?
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) मुद्दे को लेकर सुनवाई की थी और इस दौरान पंजाब सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि, इस मुद्दे में किसी भी तरह से राजनीति न की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, हमें इस मुद्द पर सख्त आदेश देने के लिए मजबूर न किया जाए। वहीं कोर्ट ने केंद्र सरकार को पंजाब में एसवाईएल नहर के निर्माण को लेकर सर्वे शुरू करने का निर्देश दिया था। जबकि केंद्र सरकार द्वारा आयोजित सर्वेक्षण प्रक्रिया में पंजाब सरकार से सहयोग करने की बात कही गई थी।
पंजाब-हरियाणा के बीच मुद्दे को सुलझाए केंद्र सरकार
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को पंजाब-हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) मुद्दे को सुलझाने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, दोनों राज्यों के बीच इस विवाद को शांति-पूर्ण तरीके से सुलझाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब से भी कहा कि वह इस विवाद में समाधान खोजने की दिशा में काम करे। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि, हरियाणा में एसवाईएल नहर का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है लेकिन पंजाब में यह निर्माण अधूरा है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में एसवाईएल नहर के निर्माण की वर्तमान स्थिति पर केंद्र सरकार से रिपोर्ट मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद को सुलझाने की दिशा में सक्रियता से काम कर रहा है और उम्मीद है कि पंजाब सरकार भी इस प्रयास में सहयोग करेगी। बता दें कि, इस मुद्दे को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई जनवरी 2024 के दूसरे हफ्ते में करेगा।
पंजाब-हरियाणा में टकराव की जड़ है SYL मुद्दा
सतलुज-यमुना लिंक नहर (SYL) मुद्दा बार-बार पंजाब-हरियाणा में टकराव बढ़ाने का काम करता है। इस मुद्दे को लेकर जहां एक तरफ सुप्रीम कोर्ट में सालों से सुनवाई चल रही है तो वहीं केंद्र सरकार की अध्यक्षता में भी पंजाब-हरियाणा के बीच SYL मुद्दे पर कई बैठकें हो चुकी हैं। इसी साल पिछले महीनों में ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ बैठक बुलाई थी। लेकिन बैठक में वही हुआ जिसकी उम्मीद की जा रही थी। SYL पर पंजाब-हरियाणा में कोई सहमति नहीं बनी। बैठक बेनतीजा रही।
पंजाब ने बैठक में फिर वही बात दोहराई कि उसके पास किसी को भी देने के लिए अतिरिक्त पानी नहीं है। SYL नहर बनाकर हरियाणा को पानी नहीं दिया जा सकता। SYL पर पंजाब की तरफ से यह तक कहा जा चुका है कि अगर सतलुज-यमुना नहर बनी तो पंजाब जल उठेगा। बता दें कि, SYL मुद्दा सियासी तूल भी पकड़ता है। ऐसे में पंजाब सरकार अभी तक कोई हल नहीं निकाल सकी है और हरियाणा और पंजाब के बीच यह विवाद जस का तस बना हुआ है। जबकि हरियाणा का कहना है कि हमारी बस यही मांग है कि हरियाणा के लिए पंजाब की तरफ से एसवाईएल नहर का निर्माण होना चाहिए। हरियाणा के लिए सबसे बड़ी समस्या पानी है, 40 सालों से अधिक समय से एसवाईएल नहर का निर्माण अटका हुआ है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा की जीत होती रही है।
SYL पर 1966 से विवाद है
बता दें कि 1966 में पंजाब से जब अलग हरियाणा राज्य बना तभी से यह विवाद है। विभाजन के समय पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को छोड़कर सभी संपत्तियां 60 और 40 के आधार पर बांटी गईं। वहीं पानी को लेकर 10 साल के लंबे विवाद के बाद 1976 में दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को अंतिम रूप दिया गया और इसी के साथ सतलुज यमुना नहर बनाने की बात कही गई। 24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने पंजाब के 7.2 एमएएफ यानी मिलियन एकड़ फीट पानी में से 3.5 एमएएफ हिस्सा हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की थी। जिसके बाद पंजाब भड़क उठा। इसके बाद साल 1981 में समझौता हुआ और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 8 अप्रैल 1982 को पंजाब के पटियाला जिले के कपूरई गांव में एसवाईएल का उद्घाटन किया था। हालांकि, इसके बाद भी विवाद नहीं थमा बल्कि या यूं कहें कि विवाद और भी बढ़ता गया।
वहीं 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एसएडी प्रमुख हरचंद सिंह लोंगोवाल से मुलाकात की थी और फिर एक नए न्यायाधिकरण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। हरचंद सिंह लोंगोवाल को समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने से भी कम समय में आतंकवादियों ने मार दिया था। वहीं 1988 में मजत गांव के पास परियोजना पर काम कर रहे कई मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिससे निर्माण कार्य ठप हो गया. 1990 में, आतंकवादियों ने नहर से जुड़े मुख्य अभियंता एमएल सेखरी और अधीक्षण अभियंता अवतार सिंह औलख की भी हत्या कर दी।
हरियाणा सरकार ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी
यह सब देखते हुए हरियाणा सरकार ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी. इसके बाद 15 जनवरी 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक साल में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 4 जून 2004 पंजाब सरकार ने अपनी याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया गया। हालांकि, पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं माना। पंजाब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राजी नहीं हुआ और पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट-2004 बनाकर हरियाणा के साथ तमाम जल समझौते रद्द कर दिए। इस तरह से पंजाब ने हरियाणा को पानी देने वाले समझौते को मानने से ही साफ इनकार कर दिया। 2017 में तो एसवाईएल पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का मुकदमा भी पंजाब सरकार के खिलाफ दर्ज हुआ था।